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Friday, March 20, 2015

मम्मी का पहला हेयर कट..

मेरी मम्मी ने आज पहली बार प्रॉपर हेयर कट करवाया… घर पर ट्रिमिंग वगैरह तो होता रहा है पर आज प्रोफ़ेशनल हाथ लगे हैं मम्मी की ज़ुल्फ़ों को। आज जन शिक्षण संस्थान के प्रशिक्षकों के लिये रखे गये रिफ़्रेशर कोर्स का तीसरा दिन था, जहाँ ये ‘प्रयोग’ हुआ। मैं बहुत खुश हूँ। मुझे याद है कुछ सालभर पहले से ही मम्मी ने धूप में जाते हुए समरकोट और स्कार्फ़ पहनना अपनाया है, उस दिन मैं मुग्ध होकर मम्मी को देख रही थी और हिचकिचाकर मम्मी ने कहा था, ‘धूप है न, स्किन पर निशान हो जाते हैं…’ (क्यूट लग रही थी गाँव की ‘साँवली’, किसान की बेटी ये कहते हुए।) और र्मैने कहा था कि ‘अपना खयाल रखना तो मम्मी, सबसे पहली, ज़रूरी और प्यारी चीज़ होती है। अच्छा है समय और ज़रुरत के साथ बदलना।‘ लेकिन मैं समझ रही थी मम्मी का टिपिकल ‘माँ’ जैसा मन, जिसके लिये अपना खयाल करना सबसे अन्तिम बात होती है, और आसान नहीं होता है कुछ हटकर करना, खासकर जिस तरह की पृष्टभूमि से हमने अपनी यात्रा शुरु की है।
मम्मी का नया हेयर कट… और खुश खुश पापा :)

उसी साड़ी में, कैसी लगी थी मैं दो महीने पहले।

मेरी मम्मी नौकरी नहीं करतीं… पर बहुत कुछ करतीं हैं। सबके लिये… अपनी संतुष्टि के लिये… महिलाओं की बेहतर स्तिथि के लिये, उनकी पहचान के लिये, उनके परिवारों में उनके ‘सुख’ के लिये। इतनी ऊर्ज़ा, प्रतिभा और जुझारुपन आखिर दबा भी तो कैसे रह सकता है। हालाँकि स्थापित सामाजिक ढकोसलों का सीधा विरोध उन्होंने नहीं किया बल्कि उन्हें ही सीढ़ी बनाकर आगे बढ़ती रहीं। साबित कर दिया कि कर तो दुनिया के मापदंडों के अनुसार भी सबकुछ कर कर सकती हूँ लेकिन फ़िर भी अपने विचारों भी कायम हूँ। आहिस्ते से चीज़ें बदलने में, दिलों को जीतने में विश्वास रखती हैं वे। और दिल की इतनी साफ़ और मासूम कि बस प्यार की खातिर अपना सबकुछ जीता हुआ हार जाएं। मैंने हर फ़ेज़ में देखा है मम्मी को… बढ़ते हुए और हमें आगे बढ़ाते हुए। थमते हुए और घबराते हुए भी देखा है, क्योंकि प्यार, सम्मान और स्वीकृति ही उनकी निधि है। मेरे पापा भी बहुत अच्छे, सरल लेकिन प्रगतिशील विचारों वाले और ऊर्जा से भरे हुए हैं पर मुझे लगता है उन दोनों ने ही एक दूसरे को ऐसा अच्छा बनाया है। दोनों ने बहुत धैर्य से वो चीज़ें बदली हैं जो बुरी लगी। बहुत संघर्षों और समाज के नकारात्मक हस्तक्षेप के बाद एक दूसरे का विश्वास और प्रेम जीता है और प्रगति के साथी बने हैं। अकेले चलना वैसे भी मम्मी का स्वभाव नहीं, हालाँकि ऐसी क्षमता बहुत है। किन्तु प्यार और स्वाभिमान से बढ़कर कुछ नहीं उनके लिये। और धन संपत्ति से तो चाहे उन्हें पूरा लाद दिया जाये (हालाँकि गहने तो पसंद है उन्हें)… वो तो बस यही मनाती रहती हैं कि इतना कुछ सम्भालूंगी कैसे मैं, भगवान! (बहुत आस्तिक है:))
'जस्ट मैरिड'

'बेस्टीज़'
मम्मी को इतनी सारी और ऐसी ऐसी चीज़ें करनी और बनानी आती हैं जो मुझे लगता है किसी और के लिये सम्भव ही नहीं है। वे सीखती रहीं हैं, पढ़ती रही हैं और सिखाती रहीं हैं। उन्नीस साल की उम्र में ही मम्मी की गोद में मेरे आ जाने के बाद भी। प्रतीक की स्थिति (ऑटिस्म) ने उन्हें बहुत तोड़ने की कोशिश की… रवि के जन्म ने उन्हें संबल लिया… जो उन्हीं की ज़िद थी… समाज में वह स्वीकृति दिलायी जो वे चाहती थी (एक स्वस्थ लड़के की माँ होने का ओहदा)। उन सब मुश्किलों दिनों में ही मम्मी ने डिप्लोमा किया, गार्मेंट मेकिग और डिज़ाइनिंग में। अब इस उम्र में जब वे संतुष्ट होने लगती है तो मैं उन्हें होने नहीं देती। मासूम होने के साथ साथ ज़रा लापरवाह भी हैं, वही कम्फ़र्ट जोन में रहने वाली बात है। पर उन्हें अब भी बहुत सी मान्यताओं को गलत साबित करना है… वर्जनांए तोड़नी है… आगे बढ़ना है। कल रात ही मैं नाराज़ हो रही थी जब उन्होंने खुद कुछ लिखने में अरुचि दिखायी और फ़िर वर्तनी की बहुत सी गलतियाँ की। अब हर काम बच्चों से करवा लेने से ये नुकसान तो होता है न! 

अपना परिवार और बच्चे उन्हें दुनिया में सबसे प्यारे हैं और मेरे लिये उनके ढेर सारे सपने हैं। बहुत सी चीज़ों पर हमारे विचार अलग भी हैं लेकिन वही मेरी आदर्श हैं, हाँ मेरे जैसी हर सदियों से चल रही बात पर सवाल उठाने वाली लड़की की।

आज नये हेयर कट में मम्मी बहुत युवा लग रही थी… बिल्कुल वैसी जैसा उनका मन है… निश्छल। उनकी हल्की भूरी आँखें हालाँकि उनके गेहुँए रंग के कारण ज़्यादा नोटिस में नहीं आतीं… लेकिन हम उनके पार देख सकते हैं।