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Saturday, September 17, 2011

‘मेरी ज़ुबां पर पड़ गये ताले हैं’


ये दुनिया है लगती अभिमानी और मतलबी सी
लेकिन उसी में रहते मुझे प्यार करने वाले हैं
इसीलिये मेरी ज़ुबां पर पड़ गये ताले हैं

मेरी अकल है घुटनों से ज़्यादा नहीं जिनके लिये
इन्हीं के साथ रहते मुझे पलकों पर बिठाने वाले हैं
इसीलिये मेरी ज़ुबां पर पड़ गये ताले हैं

हर नज़र से जहाँ खतरे का अहसास होता है
इन्हीं के बीच रहते मेरे रखवाले हैं
इसीलिये मेरी ज़ुबां पर पड़ गये ताले हैं

दिलकशी है जिनके लिये सजाने की एक चीज़ महज़
इन्हीं के बीच कहीं जिस्म से पहले रूह देखने वाले हैं
इसीलिये मेरी ज़ुबां पर पड़ गये ताले हैं


दिल पाता है अपमान और ठोकरें ही जहाँ
यहीं रहते मुझे हर हाल में अपनाने वाले हैं
इसीलिये मेरी ज़ुबां पर पड़ गये ताले हैं

इन्हीं मेरे बहुत अपनों में मिल गये
मेरी बहनों को सताने वाले हैं
पर मेरी तो ज़ुबाँ पर पड़ गये ताले हैं

इसी दुनिया में रहते हुए, बोलते इसी के खिलाफ़ 
मेरी ज़ुबां पर पड़ते छाले हैं
इसीलिये मेरी ज़ुबां पर पड़ गये ताले हैं

Wednesday, September 14, 2011

"JEEVAN SATYA KI TALASH"

पहला पहला ब्लॉग बनाया है एक दोस्त ने.. तो ब्लॉग जगत में स्वागत के तौर पर.. खूब सारी टिप्पणियाँ तो बनती ही हैं.. ये रहा ब्लॉग का पता..


पसंद आये तो उत्साहवर्धन ज़रूर करें.



और मैंने भी एक और ब्लॉग बनाया है.. पापा का ब्लॉग  जहाँ पापा की सालों पहले लिखी कविताएं पोस्ट किया करुँगी.. और उत्साहवर्धन की ज़रूरत तो पापा को भी उतनी है...


कित्ते क्यूट लगते थे ना मम्मी पापा पहले? और दिन-ब-दिन इनकी cuteness बढती ही जा रही है! 



happy blogging! :)


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