मुझे
भ्रष्टाचार बहुत फ़िल्मी लगता था। बहुत समय पहले मुझे हर तरह का अपराध ही एकदम फ़िल्मी लगता था। ऐसी चीज़ें असल ज़िन्दगी में थोड़े ही होती हैं। या शायद होती हैं पर
कहीं किसी और दुनिया में, किसी और समय में। ये दुनिया तो अच्छी है, यहाँ कमज़ोर,
बद्तमीज़ और बेवकूफ़ लोग हो सकते हैं पर पूरी तरह बुरे नहीं। फ़िर धीरे धीरे मैं यकीन
करने लगी कि ये कमज़ोरियाँ और बेवकूफ़ियाँ ही लोगों को बहुत बुरा बना देती हैं। इसके
बाद भी मैं मानती थी कि लोग चाहे कितनी ही बेशर्मी दिखांए, कितनी ही दुष्टता और चतुराई
दिखांए, उनके भीतर थोड़ी ग्लानि, थोड़ी शर्मिंदगी अवश्य होती होगी। कहीं कुछ लोग
भ्रष्टाचार करते भी होंगे तो डरे रहते होंगे, उन्हें परवाह रहती होगी अपनी इज़्ज़त
की, खुलेआम तो कोई मांग उठाते नहीं होंगे और ज़्यादा मांगने के लिये किस मुँह से
लड़ते होंगे?
मुझे
तकलीफ़ हुई जब बहुत धीरे धीरे मेरे कुछ यकीन टूटे, वो कोई और दुनिया, वो कोई और समय,
मेरी दुनिया के काफ़ी करीब है ये मुझे एहसास हुआ। लेकिन मैं खैर मना रही हूँ कि
मेरी दुनिया अभी तक इससे संक्रमित नहीं हुई है, कि पैरों पर लगे कीचड़ को दिल तक
पहुँचने नहीं दिया है मेरी इस दुनिया ने। लेकिन मैं हमेशा नहीं रहूँगी इस सुरक्षा
घेरे में। मुझे बहुत से काम करने हैं और मैं बहुत करीब से गुज़रूँगी इन दिल तोड़ने
वाली हक़ीकतों के। लोग अलग अलग रास्ते अपनांएगे और मुझसे बहुत आगे रहेंगे, शुरुआत
मैं यहीं से देख सकती हूँ। लोगों का हिसाब वो देखें, मेरा हिसाब मुझे ठीक रखना ही
है। मैं ठीक रहकर ही ठीक कर सकती हूँ वो सब, जो मैं सह नहीं सकती। मेरा विश्वास
चाहे समायोजित होता रहे, मेरे इरादे नहीं बदलेंगे। मुश्किल काम है, लेकिन मुश्किल
कामों को करने के बाद सच्ची संतुष्टि मिलती है और ज़िंदगी आसान बनी रहती है। इसके
बावजूद भी जब कुछ बुरा सा लगने लगेगा मैं याद करती रहूँगी कुछ चेहरे और कुछ शब्द
जो अलग अलग संदर्भों में कहे गये पर जिन्होंने मुझे इस छोटी घबराई हुई उम्र में
बहुत ताकत दी।
“तुम्हारी
ये सोच तुम्हें दूर तक ले जाएगी।” पापा ने फ़िर कहा था कुछ दिन पहले ही।
“मैं
तो यही मांगती रहती हूँ कि भगवान कितनी ही तरक्की, कितना ही पैसा दे, मन में पाप
कभी ना आए।” मम्मी कहती ही रहती हैं।
“मैं
तो कहती हूँ दस रूपये भी क्यों दें किसी को? हम यहीं अच्छे हैं।" इन्दु मैम (मेरी शोध पर्यवेक्षक) ने कहा था।
“एक
fighter होते हुए इतने परेशान हो जाते हो?” ये उन्होंने कहा
था जिनसे मैंने सुनना चाहा।
“आप
कर रहे हो, तो सही ही होगा।” मेरी सबसे प्यारी दोस्त रागिनी का भरोसा।
“मुझे
तब आपकी बहुत याद आयी जब मेरे स्कॉउट के फ़ॉर्म में गड़बड़ हुई और किसी ने मेरी नहीं
सुनी!” जब पहली बार मैंने जाना, मुझे अपनी ताकत मानता है मेरा छोटा सा भाई रवि,
उसके काबिल तो रहना होगा मुझे।
और
भाई प्रतीक (जो ऑटिस्टिक है) की निश्छलता तो सदा से मेरी ऊर्जा है।
मेरे
पैर ज़मीन पर है, नज़र उस सुन्दर आसमान पर है। मैं जानती हूँ, मेरी रातों की नींद
इतनी ही सुकूनभरी रहेगी और मेरे सपने ऐसे ही खूबसूरत। मुझे दुनिया अभी भी भली लगती
है, बस थोड़ी मैली है।