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Wednesday, December 01, 2010

जब मैं फ़ुरसत ‘कमा’ लूँगी



एक चाँद है खूबसूरत सा, रोज़ शाम सजधज के निकलता है

परीलोक के द्वार सा, ललचाता सा, हमारे घर की छत से दिखता है

नज़र ठहरती है उसपर, तो लगता है जैसे वक़्त ठहरता है

चाहती हूँ इतना ही मनभावन रहे वो सदा

खूब मेहनत से एक दिन, जब मैं फ़ुरसत कमा लूँगी

तब लौट आऊँगी इस सलोने चाँद के पास

और जी भर के उसे निहारूँगी



सुना है कुछ दिलचस्प किताबों के बारे में,

और कुछ को देखा है किसी बुकस्टॉल पर

या कॉलेज की लाइब्रेरी में,

कुछ को यूँ ही पढ़ना है कई बार,

बैठकर घर की सीढ़ियों पर या किसी महल अटारी में

चाहती हूँ इतनी ही लुभाएं मुझे वे सदा

खूब मेहनत से एक दिन, जब मैं फ़ुरसत कमा लूँगी

तब इन किताबों से, रच लूँगी एक संसार अनोखा

और उसमें गुम हो जाऊँगी


 

कोई धुन है जो दिल छूती है मेरा, जादुई सी लगती है

थिरकने को जी चाहता है जब कानों में पड़ती है

या बनकर गीत कभी दूसरी दुनिया में ले उड़ती है

चाहती हूँ ऐसे ही छेड़े वो मन के तार सदा

खूब मेहनत से एक दिन, जब मैं फ़ुरसत कमा लूँगी

तब घोल लूँगी उसे जीवन के संगीत में

और उससे ताल मिलाऊँगी



सुन्दर सी जगहें हैं इस धरती पर कई

रंग बिरंगे पक्षी हैं कहीं तो ऊँचे से गिरता पानी कहीं

हवाएँ बतियाती हैं कहीं तो पर्वत हैं कहते कहानी कहीं

चाहती हूँ कि यूँ ही बुलाते रहे मुझे वे सदा

खूब मेहनत से एक दिन, जब मैं फ़ुरसत कमा लूँगी

तब जाकर छिप जाऊँगी आँचल में प्रकृति के

और उसकी विशाल गोद में सदियाँ बिता दूँगी



जान से प्यारे दोस्त है कुछ, जिनसे हुआ है ये वादा

‘ओये, टच में रहियो लाइफ़टाइम वर्ना…!’

डैम सीरियसली पढ़ते हम ऑलमोस्ट सबकी की आँख के तारे

और उस आँख की पलक झपकने से पहले ही हो जाते नॉटी सारे

चाहती नहीं हूँ बल्कि खायी है कसम जान छिड़कने की सदा

खूब मेहनत से एक दिन, जब हम फ़ुरसत कमा लेंगे

तब फ़िर से इकट्ठा करके वक़्त, इकट्ठे उसे बर्बाद करेंगे



लम्बी चर्चायें पापा के साथ

और ठहाके मम्मा के साथ लगाना

बेवजह झगड़े संग रवि के मगर बिन बोले रहा ना जाना

रागिनी के साथ एक सुहानी शाम बिताना

और समझना कि साथ हो तुम तो ठोकर में है ज़माना

चाहती हूँ कि शामिल हो जाये इसमें प्रतीक से भी बतियाना

अनूठा और प्यारा रहे इतना ही ये सन्सार सदा

खूब मेहनत से एक दिन, जब मैं फ़ुरसत कमा लूँगी

तब भी यही रहूँगी मैं, अपनी किस्मत पर इतराऊँगी

और यूँ ही सबकी बातों पर दांतों तले अँगुली दबाऊँगी



एक मैं हूँ या है मुझ सा कोई या शायद हम दोनों ही

अनजान है मुझसे या जाने मेरे इन्तज़ार में

सच भी है और सपना भी, ढलता सा किसी आकार में

चाहती ही नही विश्वास है इस सपने से सच पर

कि इतनी ही बावरी रहूँगी मैं

वो यूँ ही मन्त्रमुग्ध किया करेगा मुझे सदा

खूब मेहनत से एक दिन, जब मैं फ़ुरसत कमा लूँगी

तब संग अपने ही और संग उसके, खूब वक़्त बिताउँगी…






(रागिनी मेरी बेस्ट फ़्रेन्ड का नाम है और रवि व प्रतीक भाई हैं मेरे…)
:)


Saturday, October 16, 2010

बस एक बात कहनी थी…

आगे बढ़ने से पहले आप ये पढ़ आइये…सारे कमेन्ट्स भी पढ़ियेगा ध्यान से और एक कमेंट पर अटक जाइयेगा…

http://indiascifiarvind.blogspot.com/2010/09/blog-post.html

जिसमे आपको ये 'सुन्दर' कथन मिले…

"इस कथा से स्त्री-जाति को अवश्य ही प्रेरणा मिलोगी!"

बड़े लोगों कि बातों में पड़ने के लिये बहुत बहुत क्षमाप्रार्थी हूँ…

क्या आपको इतनी बढ़िया कहानी पर ये स्टेटमेन्ट तमाचे सा नहीं प्रतीत होता ?

अरे भई! अब प्रेरणा भी नारियाँ ही लें ? क्यों जी?  सभी जागरुक स्त्रियाँ क्या समाज को आग ही लगा देना चाहती हैं ? समाज की भलाई की सोचते हुए ही हमारी नायिका ज़रीना ने ये कठोर निर्णय लिया है… एक स्त्री के सिवा हो सकता है कोई इतना मज़बूत ?

निसन्देह प्रेरणा तो लेनी ही है… प्रेरणास्पद कहानी ही है... पर सभी को लेनी है…

… उपरोक्त कमेन्ट से ऐसी बू आती है जैसे स्त्रियों को ही सारी प्रेरणा लेने की बेहद ज़रूरत आन पड़ी है…

सभी जागरुक स्त्रियाँ क्या समाज को आग ही लगा देना चाहती हैं ? पर लगता है आग लगाये बिना समाज ने सुधरना भी नहीं है!

मैं तो सोच रही थी कि एक बार स्त्री-less समाज का सामना कर ही लेते हम!  ज़रीना जी ने नाहक ही इतने insensitive लोगों की परवाह की जी! पर हमने उनके विचारों से ये जाना कि लड़कियाँ कम होंगी तो बजाय सम्मान मिलने के… तब भी उन्हीं को सारा संकट होगा…! हाय री किस्मत !


:)


गुड लक !

~No offensive intentions towards anyone~

just towards a wrong thought...

sorry !

*Heartiest congratulations to Zakir Sir for this GREAT award winning sci fi story... :)*

Tuesday, September 28, 2010

"Days are long, Years are short..."

आजकल मेरे दिन कुछ ऐसे ही गुज़र रहे हैं। आधा दिन कॉलेज में लेक्चर्स अटेण्ड करते, मस्ती मारते और आधा दिन कभी कॉलेज के प्रोजेक्ट्स बनाते तो कभी टीवी, मोबाइल, कम्प्यूटर, किताबों से दिल बहलाते, छत पर टहलते गुज़र जाता है।

 तारीखें महज़ अकों की तरह बदलती जाती हैं और एक दिन तारीख पर तारीख के नज़रिये से नज़र जाती है तो लगता है कि 'अरे, कितना सारा समय गुज़र गया!' हालाकिं ऐसा कभी नहीं महसूस होता कि इतने समय में मैनें कुछ नहीं किया बल्कि लगता है कि इतना सारा कुछ हो भी गया और कुछ पता भी नहीं चला!

शुक्रिया सर बी. एस. पाबला जी का जिन्होने कल मुझे याद दिलाया कि अपने ब्लॉग पर आखिरी पोस्ट डाले मुझे एक साल होने को आया है। 

इस एक साल में सचमुच बहुत कुछ हो  गया। मेरा MBA का पहला साल हो गया और जुलाई में मैंने Phd Entrance Test (Zoology) दिया जिसमें सलेक्शन भी हो गया।

MBA  करने का निर्णय एक बढ़िया  निर्णय साबित हुआ। मैंने अनुभव किया कि एक रेस में शामिल होना कैसा लगता है। कॉरपरेट जगत कुछ ऐसा ही है। मैंने  इस दौरान काफ़ी कुछ नया सीखा जो बहुत जरुरी था। क्योंकि ये फ़ैसला करने के लिये कि आप किसी चीज़ को पसन्द करते हैं या नहीं, उसे समझना बेहद ज़रुरी हो जाता है। और इस तरह मैंनें पाया कि बिज़नस इतनी भी बुरी चीज़ नहीं है परन्तु साइंस अब भी सबसे बेहतरीन स्ट्रीम है… :)  फ़िर मैनेज्मेन्ट की जरुरत तो हर जगह पड़ती है और पर्सनैलिटी डेवलपमेन्ट का भी बढ़िया तरीका है MBA । मैंनें प्रज़ेन्टेशन्स देना सीखा (मैं अपनी क्लास में सबसे अच्छी प्रज़ेन्टेशन देती हूँ ) और सबसे अच्छी बात, मैं इस सेमेस्टर "लीडरशिप" भी पढ़ने वाली हूँ जो मैं हमेशा से पढ़ना चाहती थी।

मैं अब जल्दी से तीसरा और चौथा सेमेस्टर पूरा कर लेना चाहती हूँ ताकि जल्दी से पीएचडी शुरु कर सकूँ और खूबसूरत सी ज़ूलॉजी की दुनिया में लौट जाँऊ। हालाँकि अब मैं MBA की दुनिया को भी बहुत मिस करुँगी और MBA वाले दोस्तों को और अपने टीचर्स को भी… :) 

खैर, अब थोड़ी ही देर बाद मेरा बर्थडे आने वाला है… Really years are short... फ़िर से बर्थडे आ गया… कितना कुछ करना है अभी तो !! अब अट्ठारह की होने वाली हूँ, हॉरिबल एक्सपीरिएन्स, क्योंकि अब मुझसे उम्मीदें बढ़ गयीं हैं… अनुभव जुड़ते जा रहे हैं और मुझे बढ़ते जाना है… :)

Miss you blogging...
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