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Saturday, November 17, 2012

"छा जाना" कैसे किया जाए… I KnOW! :)


सपने चाहे किसी भी क्षेत्र की ऊँचाइयाँ छूने के लिये क्यों ना देखे गये हों, उन्हें पूरा करने के लिये एक सा ही दृढ़ निश्चय, आत्मविश्वास और साहस चाहिये होता है। ऐसी कहानियों के पात्र बिल्कुल अलग हो सकते हैं पर सफ़र की मुश्किलें एक सी, मुश्किलों से उबरने की खुशियाँ एक सी और मन्ज़िल पाने की बढ़ती ललक एक सी। :)

एक महत्वाकांक्षी मैनेजमेन्ट ग्रेजुएट को चाहिये होती है कोई ऐसी बेहतरीन चीज़ जिसे वह अपनी प्रतिभा से ‘लोकप्रिय’ बना सके, मार्केट कर सके (MBA करने के बाद… मैं अब ये जानती हूँ:))। और, एक महत्वाकांक्षी फ़ैशन डिज़ाइनर को चाहिये होता है कि उसकी कल्पनाशीलता कुछ यूँ पंख लगाकर उड़े कि लोग उसका काम देखकर कहें, ‘अरे यही तो हम ढूँढ रहे थे’, आसान शब्दों में, अपनी उम्दा डिज़ाइन्स को ‘लोकप्रिय’ बनाना। ऐसी दो शख्सियतों को तो मिलना ही था।

पर्ल अकेडमी ऑफ़ फ़ैशन, नई दिल्ली से फ़ैशन डिज़ाइनिंग की कला में महारत हासिल करने वाली टिम्सी कम्बोज और मैनेजमेंट के मास्टर, सिद्धार्थ मित्तल ने अपने अपने हुनर को साथ मिलाकर बहुत कम वक़्त में ही डिज़ाइनर्स की भीड़ से अलग पहचान बना ली है। और इस पहचान को इन्होंने नाम दिया I KnOw, इनकी सूझबूझ भरी तेज़ रफ़्तार वाली शुरुआत से लगता है ये जोड़ी ज़रूर फ़ैशन की दुनिया में कमाल करेगी। टिम्सी Portfolio ’09 में अपने Graduating Collection के लिये Most Innovative Collection Award भी पा चुकी हैं। 

मुझे नहीं लगता फ़ैशन सिर्फ़ बेवजह की काट छाँट का नाम है और शायद यही सोच टिम्सी की भी है, तभी तो उनके डिज़ाइनर वियर्स में अनोखेपन के साथ साथ जो स्वभाविकता दिखायी देती है वो दिलों को जीत लेती है। वे इस बात का उदाहरण है कि अपनी खास सोच को कैसे ट्रेंड में बदल दिया जाये। वे जानती हैं कि कैसे एक आम सी दिखने वाली शख्सियत को सबसे खास दिखाया जाए, मैंने कहा दिखाना, क्योंकि टिम्सी और सिद्धार्थ ये अच्छी तरह समझते हैं कि यों तो हर कोई अपने आप में खास है और प्रत्येक का अपना एक अन्दाज़ है।

अपने कलेक्शन को मॉल्स और होटेल्स में प्रदर्शित करके इन दोनों ने 2009 में I KnOw की शुरुआत की। कई फ़ैशन शोज़ और एक्ज़ीबिशन्स में खूब सराहना बटोरने के बाद 2010 में उन्हें Indian Premier London Fashion Week में अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिला जिसने सभी का ध्यानाकर्षित किया। भगवान शिव के अर्धनारीश्वर स्वरूप से प्रेरणा लेकर जो लिबास उन्होंने यहाँ प्रदर्शित किये, उनके लिये उनके ड्रीम क्लाइंट का विवरण बड़ा ही दिलचस्प है, Her dream client is the most unconquerable, incomparable, unapproachable woman, empowered with the strength of a man and yet seductive like a woman. It is for the futuristic fashion queen, who always wears things and people say things about the things she wears.

देश के कई स्टोर्स के माध्यम से अपने टार्गेट सेग्मेंट के बीच अपनी अलग उपस्थिति दर्ज़ कराने के बाद साकेत, नई दिल्ली में I KnOw का अपना स्टोर खोला गया। और अब वे देश के बाहर भी सक्रिय हैं। समय की नब्ज़ पहचानते हुये टिम्सी और सिद्धार्थ ने ऑन लाइन होने का निर्णय लिया। www.fashionandyou.com पर अपने डिज़ाइनर लिबासों को लोकप्रियता दिलाने के बाद वे नवंबर में ही अपना ऑनलाइन स्टोर, www.iknowstudio.com शुरु करने वाले हैं।

सही समय पर सही अवसर को पकड़ने ले लिये तैयार होना सफ़ल होने की एक महत्वपूर्ण बात है। हाल ही में मुम्बई में हुए Lakme Fashion Week Summer Resort 2011 ने उनकी लोकप्रियता को और बढ़ाया। इसके लिये I KnOw ने पुरुषों को frugal chic look में पेश किया। यहाँ प्रदर्शित एक एक नमूना, पहनने वाले की महीन और अनोखी पसन्द को उजागर करता है और उसके व्यक्तित्व को और प्रभावशाली बनाता है। यही नहीं, यहाँ पारंपरिक परिधान भी विशेष रूप से ध्यानाकर्षित करते हैं।

ऐसे अनोखेपन ही I KnOw की खासियत है। जल्दी ही लॉन्च उनके ऑनलाइन स्टोर www.iknowstudio.com के लिये टिम्सी और सिद्धार्थ को ढेरों शुभकामनांए।



और मेरे दूसरे ब्लॉग्स को भी थोड़ा प्यार दीजिए… :)

Monday, January 30, 2012

सुनो, सपनों के राजकुमार...



सुनो, सपनों के राजकुमार
तुम्हारे सिवा किसी से ना चाहा प्यार
चुप सह लिया इसीलिये मन पर हर वार
और मांगा तुम्हें, चाहा तुम्हें
पहले से ज़्यादा हर बार

अब सोचती हूँ,
क्या उठा पाओगे तुम
मेरी अपेक्षाओं का भार
जब मिलोगे आखिरकार
मुझसे पहली पहली बार

मैं तो रूप बदलती हूँ
तुम साथ दे सकोगे?
तल्लीनता से बहती नदी
या मोहक फ़ूलों भरी डगर
बन सकोगे सागर प्यास बुझाने वाले
या दूजे ही पल प्यासे इक भ्रमर?


हो जाऊँ कभी जो आत्मलीन
हो जाये मेरा दर्शन गहन
जो ना समझो, उपहास ना करना
कभी बन जाये बहुत हठी मन,
सच लगे जो दिखलाए दरपन
समझाने का प्रयास ना करना

माहिर हूँ अकेले चलने में
ठोकर खाकर फ़िर सम्भलने में
खुद रचा है मैंने ये संसार
है ये मेरी रियासत, मेरा महल
इसीलिये खीझ उठूँगी मैं
जब जब तुम दोगे दखल

लेकिन बखूबी आता है तुम्हें
प्यार करना, खयाल करना
हाथ थामकर आगे चलना
इस आराम, इस सुख की खातिर
चाहूँगी मैं कभी कभी, पीछे चलना
सब मेरा हो, मैं तुम्हारी हो जाऊँ
फ़िक्र करना तुम, मैं कहीं खो ना जाउँ



माना, ज़रूरतों से पहले
बदलती हैं मेरी ख्वाहिशें
पर मेरे सपनों में
तुम भी रंग रूप बदलते हो
हर तरह से चाहती हूँ मैं तुम्हें
हर रूप में तुम मुझ पर मरते हो

तुम्हारी प्रेरणा तुम्हारी हमसफ़र
करती हूँ परवाह भी हर पहर
लेकिन साथ तुम्हारे होते भी 
रह ना जाऊँ अकेली ये सोचकर
कभी कभी मैं जाती हूँ डर

खैर, तुम हो सपनों के राजकुमार,
सपने होते हैं हसीं
अगर सच में मिलें हम,
क्या बरकरार रहेगा यकीं?




Wednesday, December 01, 2010

जब मैं फ़ुरसत ‘कमा’ लूँगी



एक चाँद है खूबसूरत सा, रोज़ शाम सजधज के निकलता है

परीलोक के द्वार सा, ललचाता सा, हमारे घर की छत से दिखता है

नज़र ठहरती है उसपर, तो लगता है जैसे वक़्त ठहरता है

चाहती हूँ इतना ही मनभावन रहे वो सदा

खूब मेहनत से एक दिन, जब मैं फ़ुरसत कमा लूँगी

तब लौट आऊँगी इस सलोने चाँद के पास

और जी भर के उसे निहारूँगी



सुना है कुछ दिलचस्प किताबों के बारे में,

और कुछ को देखा है किसी बुकस्टॉल पर

या कॉलेज की लाइब्रेरी में,

कुछ को यूँ ही पढ़ना है कई बार,

बैठकर घर की सीढ़ियों पर या किसी महल अटारी में

चाहती हूँ इतनी ही लुभाएं मुझे वे सदा

खूब मेहनत से एक दिन, जब मैं फ़ुरसत कमा लूँगी

तब इन किताबों से, रच लूँगी एक संसार अनोखा

और उसमें गुम हो जाऊँगी


 

कोई धुन है जो दिल छूती है मेरा, जादुई सी लगती है

थिरकने को जी चाहता है जब कानों में पड़ती है

या बनकर गीत कभी दूसरी दुनिया में ले उड़ती है

चाहती हूँ ऐसे ही छेड़े वो मन के तार सदा

खूब मेहनत से एक दिन, जब मैं फ़ुरसत कमा लूँगी

तब घोल लूँगी उसे जीवन के संगीत में

और उससे ताल मिलाऊँगी



सुन्दर सी जगहें हैं इस धरती पर कई

रंग बिरंगे पक्षी हैं कहीं तो ऊँचे से गिरता पानी कहीं

हवाएँ बतियाती हैं कहीं तो पर्वत हैं कहते कहानी कहीं

चाहती हूँ कि यूँ ही बुलाते रहे मुझे वे सदा

खूब मेहनत से एक दिन, जब मैं फ़ुरसत कमा लूँगी

तब जाकर छिप जाऊँगी आँचल में प्रकृति के

और उसकी विशाल गोद में सदियाँ बिता दूँगी



जान से प्यारे दोस्त है कुछ, जिनसे हुआ है ये वादा

‘ओये, टच में रहियो लाइफ़टाइम वर्ना…!’

डैम सीरियसली पढ़ते हम ऑलमोस्ट सबकी की आँख के तारे

और उस आँख की पलक झपकने से पहले ही हो जाते नॉटी सारे

चाहती नहीं हूँ बल्कि खायी है कसम जान छिड़कने की सदा

खूब मेहनत से एक दिन, जब हम फ़ुरसत कमा लेंगे

तब फ़िर से इकट्ठा करके वक़्त, इकट्ठे उसे बर्बाद करेंगे



लम्बी चर्चायें पापा के साथ

और ठहाके मम्मा के साथ लगाना

बेवजह झगड़े संग रवि के मगर बिन बोले रहा ना जाना

रागिनी के साथ एक सुहानी शाम बिताना

और समझना कि साथ हो तुम तो ठोकर में है ज़माना

चाहती हूँ कि शामिल हो जाये इसमें प्रतीक से भी बतियाना

अनूठा और प्यारा रहे इतना ही ये सन्सार सदा

खूब मेहनत से एक दिन, जब मैं फ़ुरसत कमा लूँगी

तब भी यही रहूँगी मैं, अपनी किस्मत पर इतराऊँगी

और यूँ ही सबकी बातों पर दांतों तले अँगुली दबाऊँगी



एक मैं हूँ या है मुझ सा कोई या शायद हम दोनों ही

अनजान है मुझसे या जाने मेरे इन्तज़ार में

सच भी है और सपना भी, ढलता सा किसी आकार में

चाहती ही नही विश्वास है इस सपने से सच पर

कि इतनी ही बावरी रहूँगी मैं

वो यूँ ही मन्त्रमुग्ध किया करेगा मुझे सदा

खूब मेहनत से एक दिन, जब मैं फ़ुरसत कमा लूँगी

तब संग अपने ही और संग उसके, खूब वक़्त बिताउँगी…






(रागिनी मेरी बेस्ट फ़्रेन्ड का नाम है और रवि व प्रतीक भाई हैं मेरे…)
:)


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