एक चाँद है खूबसूरत सा, रोज़ शाम सजधज के निकलता है
परीलोक के द्वार सा, ललचाता सा, हमारे घर की छत से दिखता है
नज़र ठहरती है उसपर, तो लगता है जैसे वक़्त ठहरता है
चाहती हूँ इतना ही मनभावन रहे वो सदा
खूब मेहनत से एक दिन, जब मैं फ़ुरसत कमा लूँगी
तब लौट आऊँगी इस सलोने चाँद के पास
और जी भर के उसे निहारूँगी
सुना है कुछ दिलचस्प किताबों के बारे में,
और कुछ को देखा है किसी बुकस्टॉल पर
या कॉलेज की लाइब्रेरी में,
कुछ को यूँ ही पढ़ना है कई बार,
बैठकर घर की सीढ़ियों पर या किसी महल अटारी में
चाहती हूँ इतनी ही लुभाएं मुझे वे सदा
खूब मेहनत से एक दिन, जब मैं फ़ुरसत कमा लूँगी
तब इन किताबों से, रच लूँगी एक संसार अनोखा
और उसमें गुम हो जाऊँगी
कोई धुन है जो दिल छूती है मेरा, जादुई सी लगती है
थिरकने को जी चाहता है जब कानों में पड़ती है
या बनकर गीत कभी दूसरी दुनिया में ले उड़ती है
चाहती हूँ ऐसे ही छेड़े वो मन के तार सदा
खूब मेहनत से एक दिन, जब मैं फ़ुरसत कमा लूँगी
तब घोल लूँगी उसे जीवन के संगीत में
और उससे ताल मिलाऊँगी
सुन्दर सी जगहें हैं इस धरती पर कई
रंग बिरंगे पक्षी हैं कहीं तो ऊँचे से गिरता पानी कहीं
हवाएँ बतियाती हैं कहीं तो पर्वत हैं कहते कहानी कहीं
चाहती हूँ कि यूँ ही बुलाते रहे मुझे वे सदा
खूब मेहनत से एक दिन, जब मैं फ़ुरसत कमा लूँगी
तब जाकर छिप जाऊँगी आँचल में प्रकृति के
और उसकी विशाल गोद में सदियाँ बिता दूँगी
जान से प्यारे दोस्त है कुछ, जिनसे हुआ है ये वादा
‘ओये, टच में रहियो लाइफ़टाइम वर्ना…!’
डैम सीरियसली पढ़ते हम ऑलमोस्ट सबकी की आँख के तारे
और उस आँख की पलक झपकने से पहले ही हो जाते नॉटी सारे
चाहती नहीं हूँ बल्कि खायी है कसम जान छिड़कने की सदा
खूब मेहनत से एक दिन, जब हम फ़ुरसत कमा लेंगे
तब फ़िर से इकट्ठा करके वक़्त, इकट्ठे उसे बर्बाद करेंगे
लम्बी चर्चायें पापा के साथ
और ठहाके मम्मा के साथ लगाना
बेवजह झगड़े संग रवि के मगर बिन बोले रहा ना जाना
रागिनी के साथ एक सुहानी शाम बिताना
और समझना कि साथ हो तुम तो ठोकर में है ज़माना
चाहती हूँ कि शामिल हो जाये इसमें प्रतीक से भी बतियाना
अनूठा और प्यारा रहे इतना ही ये सन्सार सदा
खूब मेहनत से एक दिन, जब मैं फ़ुरसत कमा लूँगी
तब भी यही रहूँगी मैं, अपनी किस्मत पर इतराऊँगी
और यूँ ही सबकी बातों पर दांतों तले अँगुली दबाऊँगी
एक मैं हूँ या है मुझ सा कोई या शायद हम दोनों ही
अनजान है मुझसे या जाने मेरे इन्तज़ार में
सच भी है और सपना भी, ढलता सा किसी आकार में
चाहती ही नही विश्वास है इस सपने से सच पर
कि इतनी ही बावरी रहूँगी मैं
वो यूँ ही मन्त्रमुग्ध किया करेगा मुझे सदा
खूब मेहनत से एक दिन, जब मैं फ़ुरसत कमा लूँगी
तब संग अपने ही और संग उसके, खूब वक़्त बिताउँगी…
(रागिनी मेरी बेस्ट फ़्रेन्ड का नाम है और रवि व प्रतीक भाई हैं मेरे…)
:)
बहुत सुन्दर लिखा है आपने ...........मनमोहक
ReplyDeleteहम ज़िन्दगी भर ये सोचते रह जाते हैं,
ReplyDeleteपर लाख मेहनत करके भी फुर्सत कमा न पाते हैं ||
कैसी ये आपाधापी, कैसी ये दौड़ है,
दो पल चैन के हम बिता न पाते हैं...
बहुत सुंदर रश्मि..... सुंदर बिम्ब और मनोहारी शब्द .... यह रचना बहुत अच्छी लगी....बधाई.... ढेर सारा प्यार...
ReplyDelete:)
ReplyDelete"सुन्दर सी जगहें हैं इस धरती पर कई
ReplyDeleteरंग बिरंगे पक्षी हैं कहीं तो ऊँचे से गिरता पानी कहीं
हवाएँ बतियाती हैं कहीं तो पर्वत हैं कहते कहानी कहीं
चाहती हूँ कि यूँ ही बुलाते रहे मुझे वे सदा"
आप जाना जब वे बुलायें.... इधर तो जाना मजबूरी है. चाहे वो पढ़ाई से रिलेटेड हो या फिर फ्यूचर प्लानिंग.. :P :)
यदि इतना सोचेंगी तो फुर्सत नहीं मिलेगी ....चाँद को अभी निहार लीजिए ...अच्छी प्रस्तुति ...भाव कुछ इस कदर बहे हैं कि कविता थोड़ी लंबी हो गयी है ...
ReplyDeleteसंगीता जी सही कह रही हैं इतना सोचोगी तो समय मिलेगा ही नहीं ...
ReplyDeleteफुर्सत मिलती नहीं ...निकालनी पड़ती है ...
बड़े सुन्दर सुन्दर सपने शीघ्र साकार हो ...
बहुत स्नेह !
इसीलिये तो कह रही हूँ कि फ़ुरसत को 'कमाऊँगी'
ReplyDeleteThank you Ma'am..:)
सुंदर .....
ReplyDeleteरश्मि दी कितने बाद आपने कुछ लिखा .... आजकल बीजी हैं क्या.....
रश्मि जी, इस कविता में आपका निश्छल मन किसी तितली की तरह उड़ता हुआ नजर आ रहा है। बहुत अच्छा लगा ऐसे मासूम भावों को निरखना।
ReplyDeleteयह कमाई आपको जल्द से जल्द हासिल हो, मेरी यही कामना है।
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ईश्वर ने दुनिया कैसे बनाई?
उन्होंने मुझे तंत्र-मंत्र के द्वारा हज़ार बार मारा।
बहुत सुन्दर रचना है!
ReplyDelete--
प्यार भरा आशीर्वाद!
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आपको पोस्ट की चर्चा बाल चर्चा मंच पर भी है!
http://mayankkhatima.blogspot.com/2010/12/30.html
बहुत प्यारी रचना!
ReplyDeletegod bless you dear !
कित्ता प्यारा लिखा आपने...बधाई.
ReplyDelete______________
'पाखी की दुनिया' में छोटी बहना के साथ मस्ती और मेरी नई ड्रेस !!
Hi Rashmi,
ReplyDelete"चाहती नहीं हूँ बल्कि खायी है कसम जान छिड़कने की सदा" makes me recall some of my feeling with my friends. I can relate this poem with me, as if this poem has been written for me itself. True, neither am I the only one who keeps occupied with work nor you...
Thanks for a thought provoking poem.
~ Kunj
बहुत सुन्दर रचना है!
ReplyDeleteशब्द जैसे ढ़ल गये हों खुद बखुद, इस तरह कविता रची है आपने।
ReplyDeleteबहुत खूब अंदाज -ए- वयां तारीफ के काबिल है ...आभार
ReplyDelete... prasanshaneey rachanaa !!!
ReplyDeleteaapke bhaavon se sahamat to ham bhi hain.....haan magar kavita thoda lambaa gayi naa...!!!
ReplyDeleteBAHUT KHOOB.......................
ReplyDeleteWWW.SANTOSHPYASA.BLOGSPOT.COM
शानदार!
ReplyDelete----
कभी यहाँ भी पधारें
बहुत बढ़िया ...शुक्रिया
ReplyDeleteचलते -चलते पर आपका स्वागत है
poem is good but went little away from poem platform and towards somewhat an article.
ReplyDeleteKeep writing
well wishes,
Avaneesh
bahut sundar bhavon ko prakat kartee aapki rachna sahaniy hai .badhai .
ReplyDeleteआप को सपरिवार होली की हार्दिक शुभ कामनाएं.
ReplyDeleteसादर
aapka about me padha.....intelligent!!
ReplyDeleteu said, we can ask ques....btayiye, itna sara aapne padha kaise?
हुत सुन्दर लिखा है आपने ...........मनमोहक
ReplyDeleteBahut Badhiya Rashmi
ReplyDeleteखूब कहा. सुन्दर लफ्ज़ और सुन्दर भाव.
ReplyDeleteबधाई.
दुनाली पर पढ़ें-
कहानी हॉरर न्यूज़ चैनल्स की
फुरसत को छोड़ सब कुछ कमाया जा सकता है.
ReplyDeletebahut achi rachna..
ReplyDeleteplease come to my blog www.pradip13m.blogspot.com
Hello Lekhika, Dilchasp post...Thank u....
ReplyDeleteAwesome Creation !! Claps !!
ReplyDeleteyaha kvita mare dil ko chhu gayi likhati raho ................. PRAWATI VERMA
ReplyDeleteमैंने आपका ब्लॉग देखा ... शब्दों का समागम काफी बढ़िया है ...बस ऐसे ही लिखते रहें और कभी फुर्सत मिले तो http://pankajkrsah.blogspot.com पे पधारें आपका स्वागत है ..
ReplyDeleteAtyant Manbhavan Rachana hai yah Rashmiji !!!! Ek aisi rachna jo padhnewalo ko mantra mugdha kar de.. Koti koti dhanyawad.
ReplyDeleteआपकी मधुर और उत्साहवर्धक टिप्पणी पढ़कर हृदय पुलकित हो गया, किन्तु प्रिय अमित, मेरी ही कृति में प्रयुक्त शब्दों का प्रयोग इस टिप्पणी में पुनः करके आपने अपनी शुद्ध हिन्दी के अपार ज्ञान का परिचय दिया है, मित्र, भाषा के शुद्ध होने से अधिक उसका रोचक और प्रभावशाली होना आवश्यक है और यही कारण है कि मैं अत्यधिक क्लिष्ट हिन्दी के प्रयोग से बचती हूँ। आशा करती हूँ आप मेरे चिट्ठे के पाठक सदा बने रहेंगे और आपको हिन्दी भाषा का सम्पूर्ण ज्ञान है ऐसा विश्वास करके अपने विकास को अवरूद्ध नहीं करेंगे, इतनी परिपक्वता व्यक्ति में अवश्य हो कि वह किसी को भी चुनौती देने से पूर्व ये स्वीकार करे कि दूसरा व्यक्ति आपसे अधिक निपुण भी हो सकता है। आशा है आपको कविता तो वास्तव में सुन्दर लगी होगी। धन्यवाद।
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