इस तीन तारीख को मेरे MBA के एक्ज़ाम्स खत्म हो गये। आखिरकार मैं दो साल (चार सेमेस्टर!) से चल रही एक जैसी और व्यस्त दिनचर्या से मुक्त हो गयी। लेकिन इन कुछ दिनों में ही अचानक जिस खालीपन का एहसास हुआ वो अजीब था। अपने को समझाना पड़ा कि ब्रेक ज़रूरी है अपनी ‘धार’ तेज़ करने के लिये। फ़िर बिल्कुल खाली तो मैं हो ही नहीं सकती। जैसा कि हमेशा कहती रहती हूँ, करने को कितना कुछ है! सोचा कि इस ठहराव के दौरान, इससे पहले कि मैं किसी और चीज़ में मग्न हो जाउँ, क्यों ना ब्लॉग की ही खबर ली जाये। साथ में जो अपने कॉलेज में इतनी सारी तस्वीरें लीं हैं, उनमें से एक दो पर यहाँ भी तारीफ़ पा ली जाये। :D
बहुत देर से ही सही, पर मैंने MBA को भी अपना लिया था। कॉलेज कैम्पस और मैनेजमेन्ट के सबजेक्ट्स, सब अपने लगने लगे थे। नये दोस्त बने थे जो सबसे प्यारे दोस्त साबित हुए। और धीरे-धीरे सेशनल्स, प्रोजेक्ट्स और सेमेस्टर एक्ज़ाम्स के चक्कर में ही रम गयी मैं। चाहे कोई कॉलेज आये ना आये, हम आठ लोग तो ज़रूर हर क्लास अटेण्ड करते। कोई क्लास नहीं होती तब भी कॉलेज आते और साथ मे मस्ती मारने का कोई मौका नहीं छोड़ते। कुल मिलाकर हमने इन दो सालों मे खूब मज़े किये। बस मैं कभी-कभी ज़ूलॉजी की लैब और उसकी बदबू को ज़रूर मिस करती थी, लेकिन ये नयी दुनिया भी बहुत प्यारी थी। बस जब एक्ज़ाम्स होते थे तो लगता था कि ज़ूलॉजी पढ़ना और लैब में खूब तल्लीन (अब कुत्ता-मछली का दिल तलाश करते हुए ट्रे का फ़ोर्मेलिन आँखों में चला जाये तो उसे क्या कहा जाये!) होकर डिसेक्शन करना ज़्यादा दिलचस्प था, ये एक अलग बात है कि इतनी 'मेहनत' के बाद प्रयोग कितने सफ़ल होते थे और परीक्षाओं में नम्बर कितने आते थे। आखिरी वक़्त में प्रैक्टिकल रिकॉर्ड्स बनाने की मारा मारी और फ़िर उन्हें चेक कराने की आपाधापी बहुत याद आती थी शुरु में। धीरे धीरे इनकी जगह आखिरी वक़्त में तैयार होते MBA डिज़र्टेशन्स की माथापच्ची ने ले ली।
अब ये सब एहसास भी केवल यादों का हिस्सा होंगे। बहुत से खट्टे मीठे और चटपटे अनुभवों के साथ बहुत सी नयी चीज़ें सीखने और लोगों को समझने का मौका मिला। ये खूबसूरत सा वक़्त कमबख्त याद बहुत आयेगा। हम दोस्तों ने एक दूसरे से मिलते रहने के वादे तो खूब किये हैं, देखते हैं निभाए कितने जाते हैं। love you and will miss you a lot guys..! बस यही तो वक़्त था जब हम चाहे जितने Daring हो सकते थे, सचमुच सबसे ज़्यादा खुरापातें मैंने इसी दौरान की। अगर कुछ सुधरी हूँ तो थोड़ी सी बिगड़ भी गयी हूँ (कृपया अन्यथा ना लें, मेरा मतलब है ज़्यादा नटखट हो गई हूँ और वाचाल भी J)। अपना नया अवतार पसन्द है मुझे। आत्मविश्वास और प्रतिस्पर्धा की भावना तो बढ़ ही गयी है लेकिन शायद इस भावना ने थोड़ा असुरक्षित और अहंकारी भी बना दिया है। विरोधाभासी बात ये है कि व्यवहारिक होना भी सिखलाया है इस वक़्त ने। अब समय है अपने इन नये नये गुणों में से काम की चीज़ों को बढ़ाना और खतरनाक लक्षणों को खुद से दूर करने का। वक़्त मिला है आगे बढ़ने से पहले थोड़ा सा ठहरने का।
कुछ खत्म होता है तो कुछ नया शुरु भी तो होता है। थोड़ी सी और ‘improved’ होकर मैं अपने सामने देख रही हूँ, आगे अनिश्चितता भी है और उत्साह भी। ऊपर से दिख रही हूँ चुप और भीतर से घबरा भी रही हूँ। आजकल पता ही नहीं चलता कि मम्मी-पापा के साथ डिस्कशन्स कब ‘heated’ हो जाते हैं। लेकिन मेरा इस concept पर से विश्वास नहीं बदलता कि ‘जो होता है, अच्छे के लिये ही होता है’। और फ़िर सब ठीक हो जाता है जब विचारों की नयी और लम्बी श्रृँखला एक नया निष्कर्ष निकाल लाती है। अपनी कमज़ोरियों और गलतियों को समझना यों भी महत्वपूर्ण है और कुदरत हमें इसके लिये तरह-तरह के और अनोखे बहाने देती है। इस बार का निष्कर्ष ये निकला कि जो स्वीकार नहीं किया जा सकता उसे बदलना और जो बदला नहीं जा सकता उसे स्वीकार करना ज़रूरी है। और समय-समय पर सबको ये समझाना कि क्या हमें स्वीकार्य नहीं है और खुद को ये समझाना कि क्या बदलना सम्भव नहीं है, बेहद ज़रूरी होता है।
खैर, अब एमबीए खत्म होने के बाद, मैं अपने साइंस वाले रास्ते पर आगे बढ़ सकती हूँ। एमबीए उपयोगी है और मददगार रहेगा चाहे मैं किसी भी क्षेत्र में जाऊँ लेकिन मुझे अब भी विज्ञान पढ़ना ज़्यादा पसंद है। मुझे ज़ूलॉजी से PhD entrance तो मैंने पिछले साल जून में ही पास कर लिया था लेकिन हमारी लेटलतीफ़ युनिवर्सिटी अभी तक नये नियमों के अनुसार 6 महिने के कोर्स वर्क का सिलेबस तय नहीं कर पाई है। पर जैसा कि कहा जाता है कि तैयारी महत्वपूर्ण है। बहरहाल, इन्तज़ार के वक़्त का समझदारी से उपयोग करना अब मेरा काम है।
कल 8 जून मम्मी का बर्थडे था, मम्मी पापा की शादी की सालगिरह थी और एक बहुत प्यारा दिन था। मैं सबसे ज़्यादा खुश तब ही होती हूँ जब मेरे मम्मी पापा खुश होते हैं। मैं लगभग सबकुछ भूल जाती हूँ ऐसे मौकों पर और जैसे दुनिया की ‘luckiest girl ever’ बन जाती हूँ। बाकि हर तरह का प्यार जैसे बेमानी लगता है, सब जानते हैं इस उमर में लड़कियों को कितने तरह के प्यार ‘सहने’ और ‘ठुकराने’ पड़ते हैं ;) (वैसे सब लोग अपना दिल ना तोड़ें, सम्मान सबके प्यार का करती हूँ J)
सोच रही थी, पता नहीं कैसा गुज़रने वाला है ये दिन, मेरी तो नींद भी नौ बजे खुली (वैसे आजकल रोज़ सुबह नौ बजे ही जाग रही हूँ, रात को रवि के होमवर्क में मदद करते देर हो जाती है, लेकिन कल के दिन मैंने सोचा था जल्दी उठूँगी)। मम्मी को जब गले लगकर विश किया तो पता चला कि पापा ने तो रात तो ठीक बारह बजे फ़ोन करके (इन दिनों नाइट ड्यूटी है पापा की) विश किया था, जिसका जवाब मम्मी ने कुछ यूँ दिया था, ‘same to you, अच्छा अब सो जाऊँ मैं?’ । जब सोचती हूँ ना कि “how cool my mom dad are!” तो बहुत मज़ा आता है। प्रतीक छुट्टियों में घर पर है तो सब साथ में कहीं जा तो नहीं सकते थे। मम्मी ने सूजी का हलवा बनाया जिसे केक की तरह काटा गया और बाकि का दिन साधारण लेकिन खुशनुमा गुज़रा। शाम को हम सबको एक प्यारा सरप्राइज़ मिला जब पापा मम्मी के लिये नया मोबाइल फ़ोन (वो भी मल्टीमीडिया) लेकर आ गये! मम्मी की प्रतिक्रिया सबसे उपयुक्त ना सही परन्तु देखने लायक थी, ‘मैंने तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था!’ वैसे मम्मा, किसी ने भी नहीं सोचा था। कुल मिलाकर, एक खूबसूरत दिन, छोटी छोटी प्यारी बातों से भरा हुआ था, जो सटीकता से लिखी नहीं जा सकती पर महसूस सदा की जा सकती हैं और मुझे सदा याद रहेंगी। love you mummy and papa!
ये वक़्त जैसे सुबह मुँह अन्धेरे जागने जैसा है जब बाकि सब लोग सो रहे हो और आपके मन में एक साथ कई विचार जाग रहे हो। लेकिन उस वक्त खामोशी में, छत पर जाकर सुन्दर से माहौल में, मन ही मन कोई ख़ूबसूरत गीत गुनगुना सकते हैं।
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